नई दिल्ली। एक फर्जी रेप केस में छह साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार हरियाणा के संदीप दहिया को इंसाफ मिला है। दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया है। कोर्ट ने माना कि यह मामला पूरी तरह झूठा, सुनियोजित और साजिशन था। साथ ही कोर्ट ने युवती के खिलाफ झूठी गवाही देने और फर्जी केस दर्ज कराने के आरोप में मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
कहानी की शुरुआत फेसबुक से हुई थी
यह मामला नवंबर 2019 में शुरू हुआ, जब सोनीपत जिले के गढ़ी बाला गांव निवासी संदीप को ‘तृषा राठौर’ नाम की फेसबुक प्रोफाइल से मैसेज आया। कुछ दिनों की बातचीत के बाद युवती दिल्ली पहुंची, जहां संदीप उसे रेलवे स्टेशन से होटल लेकर गया। अगले ही दिन युवती ने उस पर बलात्कार का आरोप लगा दिया। 24 नवंबर को संदीप पर रेप का केस दर्ज हुआ और उन्हें जेल भेज दिया गया।
पैसों के बदले केस खत्म करने का प्रस्ताव
कुछ समय बाद युवती ने संदीप की मां से संपर्क कर 5-7 लाख रुपये की मांग की और बदले में कोर्ट में गवाही बदलने की बात कही। सौभाग्य से उस वक्त संदीप का एक दोस्त मौजूद था जिसने इस बातचीत का वीडियो रिकॉर्ड कर लिया। यही वीडियो बाद में संदीप की बेगुनाही का सबसे मजबूत सुबूत बना।
बेटे की गिरफ्तारी से मां भी टूटी
संदीप की मां रामरती बताती हैं, “गांव में लोग तरह-तरह की बातें करते थे। कोई कहता कि उसी लड़की से शादी करवा दो। लेकिन मुझे यकीन था कि मेरा बेटा निर्दोष है और एक दिन जरूर छूटेगा।”
इस केस के चलते संदीप की नौकरी चली गई और सामाजिक बदनामी का सामना करना पड़ा। मां ने मानसिक और शारीरिक रूप से भी बहुत दुख झेला।
जांच में सामने आया युवती का क्रिमिनल रिकॉर्ड
9 दिसंबर 2019 को रामरती ने सोनीपत के कुंडली थाने में एक शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस ने केस की गहराई से जांच शुरू की। एडवोकेट नीतेश धनखड़ के अनुसार, 2020 में सबूत जुटाए जाने लगे और मार्च में संदीप को बेल मिली।
2022 में जब पुलिस युवती का ब्लड सैंपल लेने जयपुर पहुंची, तो पता चला कि वह जयपुर की एक जेल में बंद है। उसकी गवाही के दौरान वकील ने उसके हाथों पर ब्लेड से कटे निशान देखे। पूछताछ करने पर एक पुराना केस सामने आया, जो 2014 में जयपुर के जवाहर सर्किल थाने में दर्ज था।
कोर्ट का फैसला : झूठी गवाही, साजिश और सजा का आदेश
करीब 11-12 गवाहियों और वर्षों तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने 2025 में फैसला सुनाया। संदीप को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि युवती द्वारा लगाया गया आरोप न केवल झूठा था, बल्कि सोची-समझी साजिश के तहत लगाया गया था।
झूठे केस पर युवती के खिलाफ कार्रवाई शुरू
कोर्ट ने युवती के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत झूठी गवाही देने, न्यायालय को गुमराह करने और निर्दोष को फंसाने के लिए एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि युवती को उतनी ही सजा मिलनी चाहिए, जितनी संदीप को मिलती अगर वह दोषी साबित होते।
संबंधित धाराएं:
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 211 और 193
- धारा 211: झूठे आरोप लगाने पर — अधिकतम 7 साल की सजा और जुर्माना।
- धारा 193: अदालत में झूठी गवाही देने पर — अधिकतम 7 साल की सजा और जुर्माना।
Leave a Reply