म्यांमार की कैद से लौटे युवाओं की कहानी: ‘प्राइवेट पार्ट में करंट, सूअर का मांस और 18 घंटे की शिफ्ट’; बिहार के पांच युवकों की ज़ुबानी बंधक बनने की दास्ता

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पटना। 1.20 लाख रुपए की मोटी सैलरी का सपना, विदेश में उज्जवल भविष्य की उम्मीद और दिल्ली की बेरोजगारी से तंग युवाओं को म्यांमार के साइबर ठगी गिरोह ने ऐसा जाल में फंसाया कि 5 महीने की ज़िंदगी नरक बन गई। थाईलैंड के रास्ते म्यांमार पहुंचे बिहार के पांच युवक, जिनमें गोपालगंज के वाहिद और उनका चचेरा भाई सहुद भी शामिल थे, चाइनीज माफिया के बंधक बना दिए गए।

रविवार को स्थानीय मीडिया समूह (भास्कर) ने इन युवकों से बातचीत की, तो उनका डर साफ झलक रहा था। किसी ने फोटो देने से मना किया, तो किसी ने वीडियो कॉल पर बात तक नहीं की, लेकिन अपनी दर्दनाक कहानी साझा की—जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।


सपना था विदेश में नौकरी का, हकीकत बनी नरक की ज़िंदगी

वाहिद ने बताया, “दिल्ली में जब नौकरी नहीं मिली तो मामा के ज़रिए नीरज नाम के एजेंट से संपर्क हुआ। उसने बैंकॉक में 1.20 लाख सैलरी की नौकरी का ऑफर दिया। बताया कि टेली-कस्टमर सर्विस की जॉब है, ऑनलाइन इंटरव्यू लिया और वीजा का वादा किया। 30 हजार रुपए लेकर एयर टिकट भी भेज दिया।”

26 अक्टूबर 2024 को वे दोनों थाईलैंड पहुंचे, लेकिन एयरपोर्ट पर कोई नहीं आया। बाद में कार से म्यांमार बॉर्डर तक पहुंचाया गया और मोई नदी पार कराकर दो हथियारबंद लोगों को सौंप दिया गया, जो आर्मी की वर्दी में थे।


जबरन कराया गया साइबर क्राइम, विरोध करने पर यातना

म्यावाडी शहर के एक सुनसान इलाके में ‘डोंग मेन पार्क’ नामक परिसर में इन्हें रखा गया। वहां 15 दिन की ट्रेनिंग के बाद ‘ब्लू स्कैमर’ नाम की कंपनी में काम पर लगा दिया गया। काम था अमेरिकी नागरिकों को स्क्रिप्ट पढ़कर क्रिप्टो इन्वेस्टमेंट में फंसाना।

“जब विरोध किया और घर वापस जाने की बात की तो कहा गया कि तुम बेचे गए हो। लौटना है तो चार हजार डॉलर दो। नहीं तो फ्री में काम करो।”

यातनाएं:

  • टारगेट नहीं पूरा करने पर प्राइवेट पार्ट में करंट दिया जाता था।
  • खाने में सूअर का मांस, सूखा चावल और ब्रेड मिलता था।
  • दिन में 18 घंटे काम कराते, एक भी दिन छुट्टी नहीं।
  • भागने की कोशिश करने पर गोली मार दी जाती थी।

तीन लाख देकर भी नहीं छूटे, चाइनीज माफिया चलाते हैं गिरोह

वाहिद के पिता ने एजेंट को तीन लाख रुपए दिए, लेकिन उनके बेटे को छोड़ा नहीं गया। “वहां करीब 500 से ज्यादा कंपनियां इसी तरह की जालसाजी करती हैं और 3,000 से ज्यादा भारतीय युवक-युवतियां फंसे हैं।”

डोंग मेन पार्क का हाल:
यह इलाका म्यांमार सरकार के कब्जे में नहीं है। यहां बगावती आर्मी का राज है, और साइबर क्राइम ही उनकी कमाई का जरिया है। ऊंची बिल्डिंगों में कैद किए गए युवक काम, रहन-सहन और खाने के लिए पूरी तरह माफिया पर निर्भर रहते हैं।


बिजली कटने से टूटा शिकंजा, म्यांमार फोर्स ने किया रेस्क्यू

चीन सरकार ने जब अपने युवकों की रिहाई के लिए दबाव बनाया और म्यांमार ने हाथ खड़े कर दिए, तो थाईलैंड की मदद से फरवरी के पहले हफ्ते में पूरे इलाके की बिजली कटवा दी गई। अंधेरे का फायदा उठाकर म्यांमार की बॉर्डर गार्ड फोर्स (BGF) ने छापा मारा और 36 भारतीय युवकों सहित अन्य को छुड़ा लिया।

13 अप्रैल को ये सभी पटना लौटे, लेकिन जो मानसिक आघात वे लेकर आए हैं, वह सालों तक पीछा नहीं छोड़ेगा।


मानव तस्करी और ठगी के इस नेटवर्क को लेकर सवाल

  • एजेंट कौन हैं?
    किसके नेटवर्क से नीरज जैसे एजेंट भारत में काम कर रहे हैं?
  • सरकारी कार्रवाई कहाँ है?
    विदेश मंत्रालय, राज्य सरकारें और पुलिस क्या इस पूरे गिरोह का पता लगा पाएंगी?
  • भविष्य क्या होगा?
    जो युवक बचे हैं, उन्हें क्या कानूनी मदद मिलेगी?

क्या कहते हैं कानून में इस पर प्रावधान?

भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC)

  • धारा 370 (मानव तस्करी): 7 से 10 साल की सज़ा
  • धारा 420 (धोखाधड़ी): 7 साल तक की सज़ा
  • धारा 323, 324 (मारपीट): 1 से 3 साल तक की सज़ा

सरकार को तुरंत उठाने होंगे कदम

  • ठगी के एजेंटों की पहचान और गिरफ्तारी
  • विदेश मंत्रालय की ओर से सभी बचे भारतीयों की सुरक्षित वापसी
  • युवाओं को फर्जी जॉब से बचाने के लिए जागरूकता अभियान
  • विदेश जाने से पहले वैध वीज़ा और कंपनी जांच अनिवार्य करना

वाहिद और उनके साथी वापस आ गए, लेकिन हजारों अब भी फंसे हैं। यह घटना न केवल बेरोजगारी की त्रासदी बताती है, बल्कि यह भी कि कैसे एक सपना, एक झूठे वादे में तब्दील होकर नरक बन सकता है।

 

 


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