सिर्फ 5% ही वापस मिली ठगी की रकम: साइबर अपराध के मामलों में न बैंक दे रहे राहत, न अदालतें

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नई दिल्ली। देशभर में साइबर ठगी के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, लेकिन चिंताजनक तथ्य यह है कि इन मामलों में पीड़ितों को न्याय या राहत मिलना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। पिछले तीन वर्षों—2022 से 2024—के आंकड़े बताते हैं कि ठगी गई कुल रकम में से मात्र 5% ही पीड़ितों को वापस मिल पाई है। इसका सीधा अर्थ है कि न तो बैंकिंग सिस्टम और न ही न्यायिक व्यवस्था इस आधुनिक अपराध से निपटने में प्रभावी साबित हो रही है।

हजारों करोड़ रुपये की ठगी, लेकिन राहत न के बराबर

नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल और बैंकों से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, बीते तीन सालों में लाखों लोग साइबर ठगी का शिकार हुए हैं। इनमें फर्जी लिंक, OTP ठगी, फ़िशिंग, सोशल मीडिया स्कैम, KYC अपडेट के नाम पर धोखाधड़ी और फर्जी कस्टमर केयर से जुड़ी घटनाएं शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस अवधि में साइबर ठगी का कुल आंकड़ा हजारों करोड़ रुपये तक जा पहुंचा है।

लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इतनी बड़ी राशि में से केवल 5% रकम ही अब तक पीड़ितों को लौटाई जा सकी है। यानी, 95% पीड़ित आज भी न केवल आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं, बल्कि मानसिक तनाव से भी गुजर रहे हैं।

बैंकों की धीमी प्रक्रिया बनी बड़ी बाधा

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि बैंक अक्सर समय पर प्रतिक्रिया नहीं देते। जब कोई ग्राहक साइबर ठगी की शिकायत करता है, तो उसे प्रक्रिया के नाम पर टालमटोल का सामना करना पड़ता है। कई बार शिकायत दर्ज होने के बावजूद संबंधित बैंक खाते को फ्रीज़ करने में देरी हो जाती है, जिससे ठग आसानी से पैसा निकाल लेते हैं।

 विशेषज्ञ राय:
“जब तक बैंक और संबंधित एजेंसियां तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देंगी, तब तक साइबर ठगी पर नियंत्रण पाना मुश्किल है।”
– मनोज अग्रवाल, साइबर विशेषज्ञ

न्यायिक प्रक्रिया की रफ्तार भी बेहद धीमी

ठगी के मामलों में न्याय पाने के लिए अदालत का रुख करना पड़ता है, लेकिन भारतीय न्याय प्रणाली की धीमी प्रक्रिया के चलते वर्षों तक मुकदमे चलते रहते हैं। अधिकतर मामलों में पीड़ित थक-हारकर केस को बीच में ही छोड़ देते हैं या समझौता कर लेते हैं। इससे अपराधियों का हौसला और बढ़ता है।

तकनीकी जाँच और अकाउंट ट्रेसिंग में खामियां

साइबर अपराध की जांच में तकनीकी दक्षता की आवश्यकता होती है। लेकिन देश के अधिकांश थानों और साइबर सेल्स में तकनीकी संसाधनों की भारी कमी है। साथ ही, पुलिसकर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण न होने के कारण, वे साइबर ठगी के मामलों की जाँच समयबद्ध और प्रभावी ढंग से नहीं कर पाते।

 

क्या कहती है कानून व्यवस्था?

भारतीय दंड संहिता और IT एक्ट के तहत साइबर अपराधों के लिए सज़ाएं निर्धारित हैं:

प्रावधानों का बॉक्स:

 

जनता को सतर्क रहने की जरूरत

विशेषज्ञों और सरकारी एजेंसियों ने आम जनता को सतर्क रहने की सलाह दी है। फर्जी कॉल्स, लिंक, अनजान कस्टमर केयर नंबरों और संदिग्ध ईमेल से सावधान रहने की आवश्यकता है। साथ ही, बैंकों को भी ग्राहकों को जागरूक करने और साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देने की सख्त जरूरत है।

सुझाव:

कभी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें

OTP या बैंकिंग जानकारी किसी से साझा न करें

बैंकिंग ऐप्स में टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन ऑन रखें

साइबर क्राइम की शिकायत तुरंत www.cybercrime.gov.in पर दर्ज करें

 


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