भोपाल। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने उमरिया कलेक्टर द्वारा एक महिला को जिलाबदर करने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कलेक्टर के फैसले को अवैधानिक करार देते हुए 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान संभागायुक्त पर भी तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि वे अपने विवेक से काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि किसी डाकघर की तरह सिर्फ मुहर लगाने का काम कर रहे हैं।
क्या है मामला?
उमरिया जिले की निवासी माधुरी तिवारी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया था कि उनके खिलाफ केवल छह आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से दो धारा 110 (गुंडा एक्ट), दो मामूली मारपीट और दो एनडीपीएस एक्ट के तहत दर्ज किए गए हैं। हालांकि, इनमें से किसी भी मामले में उन्हें सजा नहीं हुई थी। इसके बावजूद 21 अक्टूबर 2024 को उमरिया कलेक्टर धरनेंद्र कुमार जैन ने उन्हें जिलाबदर करने का आदेश दे दिया।
महिला ने इस आदेश के खिलाफ 20 जनवरी 2025 को संभागायुक्त सुरभि गुप्ता के पास अपील की, लेकिन कमिश्नर ने आदेश को यथावत रखा। इसके बाद 27 जनवरी को उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि जिलाबदर की यह कार्रवाई एसएसओ मदन लाल मरावी के बयान के आधार पर की गई थी, जबकि इस मामले में महिला के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं थे।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा-“उमरिया कलेक्टर ने महिला के खिलाफ जिलाबदर की कार्रवाई की। उसके बाद जब महिला ने कमिश्नर के पास अपील की तो उन्होंने भी तथ्य और परिस्थितियों पर अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया।”
कोर्ट ने यह भी पाया कि एनडीपीएस एक्ट के तहत दर्ज एक प्रकरण में महिला के खिलाफ कार्रवाई केवल सह-आरोपी रमेश सिंह सेंगर के बयान के आधार पर की गई थी, जबकि महिला के पास से कोई प्रतिबंधित पदार्थ नहीं मिला था।
बिना देखे आदेश पर मुहर लगा दी
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संजीव कुमार सिंह ने दलील दी कि पुलिस ने जो रिपोर्ट भेजी थी, उसमें महिला के खिलाफ राज्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। इसके बावजूद कलेक्टर ने बिना जांच-पड़ताल किए जिलाबदर का आदेश पारित कर दिया।
अधिवक्ता ने कहा- “संभागायुक्त ने भी इस मामले की उचित जांच किए बिना ही कलेक्टर के आदेश पर अपनी मुहर लगा दी, जो न्यायसंगत नहीं है।”
कोर्ट ने कहा- ‘आज अंग्रेजों का राज नहीं’
हाईकोर्ट ने 7 मार्च 2025 को अपने फैसले में कलेक्टर के आदेश को रद्द करते हुए उमरिया प्रशासन पर 25 हजार रुपए का हर्जाना लगाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रशासन को कानून के दायरे में रहकर काम करना चाहिए।
न्यायालय ने संभागायुक्त को फटकार लगाते हुए कहा- “आज अंग्रेजों का राज नहीं चल रहा है। कानून के अनुसार ही काम करना चाहिए।”
घटनाक्रम पर एक नजर
- 21 अक्टूबर 2024: उमरिया कलेक्टर ने महिला के खिलाफ जिलाबदर की कार्रवाई की।
- 20 जनवरी 2025: महिला ने कमिश्नर के पास अपील की, लेकिन आदेश बरकरार रखा गया।
- 27 जनवरी 2025: महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
- 6 फरवरी 2025: हाईकोर्ट में पहली सुनवाई हुई, नोटिस जारी कर रिकॉर्ड मंगाया गया।
- 20 फरवरी 2025: रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया, कोर्ट ने दोबारा सुनवाई की।
- 7 मार्च 2025: हाईकोर्ट ने कलेक्टर का आदेश रद्द कर 25 हजार रुपए का हर्जाना लगाया।
क्या है जिलाबदर?
जिलाबदर (बाह्य निष्कासन) एक प्रशासनिक कार्रवाई है, जिसमें किसी व्यक्ति को जिले की सीमा से बाहर रहने का आदेश दिया जाता है। यह आमतौर पर उन लोगों पर लागू किया जाता है, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले होते हैं और जो कानून-व्यवस्था के लिए खतरा माने जाते हैं।
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