भोपाल। झीलों की नगरी भोपाल के तालाबों में विदेशी मछलियों की बढ़ती संख्या पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन रही है। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के जूलॉजी एप्लाइड एक्वाकल्चर विभाग द्वारा किए गए सर्वे में खुलासा हुआ है कि शहर के दस में से आठ तालाबों में भारत में प्रतिबंधित थाई मांगुर, बिग हेड और तिलापिया मछलियां पाई गई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन मछलियों की उपस्थिति से जलाशयों का पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो सकता है और यह स्थानीय जलीय जीवों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रही हैं।
विदेशी मछलियों का तालाबों पर कब्जा
भोपाल में करीब 13 छोटे-बड़े तालाब हैं, जो शहर के जल स्रोत और पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन अब इन तालाबों में तेजी से विदेशी मछलियां पनप रही हैं। सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति शाहपुरा झील की है, जहां बड़ी संख्या में तिलापिया मछली पाई गई है। इस मछली का स्वभाव आक्रामक और सर्वाहारी होता है, जिसके चलते यह अन्य मछलियों के भोजन को खत्म कर रही है और उनके अस्तित्व को खतरे में डाल रही है।
प्रोफेसर विपिन व्यास, जो बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के जूलॉजी एप्लाइड एक्वाकल्चर विभाग के प्रमुख हैं, बताते हैं,
“थाई मांगुर बहुत तेजी से बढ़ने वाली मछली है, जो अपने बड़े आकार और अधिक भोजन खपत के कारण तालाबों की जैव विविधता को नुकसान पहुंचाती है। यह छोटी मछलियों को खा जाती है, जिससे जलीय खाद्य श्रृंखला पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।”
ग्रामीण क्षेत्रों में चोरी-छुपे पालन
भोपाल के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में चोरी-छुपे प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली का पालन किया जा रहा है। द मूकनायक की वेबसाइट में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रायसेन रोड के कोलौआ गांव में खेतों में अस्थायी टैंकों में इस मछली को बड़े पैमाने पर पाला जा रहा है।
बारिश के मौसम में शहर में फैल रही मांगुर
स्थानीय लोगों के मुताबिक बारिश के मौसम में जब शहर के नाले उफान पर होते हैं, तब थाई मांगुर बाहर निकलकर शहर के जल स्रोतों में पहुंच जाती है। यह मछली गंदे पानी और कीचड़ में भी जिंदा रह सकती है, जिससे यह तेजी से फैलती जा रही है।
एमएससी एक्वाकल्चर के छात्र एसके यामिनी के अनुसार,
“यह मछली तालाब के इकोसिस्टम को खराब कर सकती है। इसके अधिक भोजन करने और मांसाहारी स्वभाव के कारण स्थानीय प्रजातियों के लिए भोजन की उपलब्धता कम हो जाती है।”
थाई मांगुर: पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा
थाई मांगुर मछली भारत में प्रतिबंधित है, लेकिन इसके पालन पर पूरी तरह रोक नहीं लग पाई है।
पर्यावरण पर असर
- यह तालाब में ऑक्सीजन की कमी कर देती है, जिससे अन्य मछलियां मरने लगती हैं।
- छोटी मछलियों और जलीय कीड़ों को खाकर यह जैव विविधता को नष्ट कर रही है।
- यह तेजी से फैलती है, जिससे स्थानीय मछलियों की संख्या कम हो रही है।
स्वास्थ्य पर असर
विशेषज्ञों के अनुसार, मांगुर मछली के मांस में भारी धातुएं पाई जाती हैं, जो कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती हैं।
डॉ. राकेश वर्मा, जो भोपाल के एक वरिष्ठ चिकित्सक हैं, बताते हैं,- “मांगुर मछली में लेड, आयरन और आर्सेनिक जैसे हानिकारक तत्व होते हैं, जो कैंसर, लीवर और प्रजनन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं।”
भोपाल के बड़े तालाब में अमेरिका की ‘एलिगेटर गार फिश’
भोपाल के बड़े तालाब में उत्तरी अमेरिका में पाई जाने वाली एलिगेटर गार फिश मिली थी। यह एक आक्रामक मछली है, जिसे किसी ने अवैध रूप से तालाब में छोड़ दिया था।
मत्स्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, “एलिगेटर गार फिश की लंबाई 10 फीट तक हो सकती है, और यह बेहद आक्रामक होती है। इसे तालाब में छोड़ना स्थानीय मछलियों के लिए घातक साबित हो सकता है।”
क्यों होती है थाई मांगुर की अवैध खेती?
थाई मांगुर मछली की ग्रोथ बहुत तेज होती है। मात्र 3-4 महीने में यह एक किलो से अधिक वजन की हो जाती है। यही कारण है कि किसान इसे अवैध रूप से पालते हैं।
भोपाल के तालाबों में विदेशी मछलियों की मौजूदगी एक गंभीर पर्यावरणीय संकट बन रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो स्थानीय जलीय जीवन को भारी नुकसान हो सकता है। प्रशासन को इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है, ताकि भोपाल के ऐतिहासिक जल स्रोतों को संरक्षित किया जा सके।
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