भोपाल। मध्य प्रदेश के मंडला जिले में पुलिस द्वारा किए गए एक कथित एनकाउंटर में आदिवासी युवक हिरन बैगा की मौत पर विवाद गहरा गया है। पुलिस ने उसे नक्सली करार दिया, लेकिन स्थानीय लोग और विपक्षी दल इस दावे को खारिज कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने इस घटना को “आदिवासी समाज पर हमला” बताया और सरकार से न्यायिक जांच की मांग की है। अब यह मुद्दा सोमवार को विधानसभा में भी गूंज सकता है!
सिंघार ने कहा कि प्रदेश में पुलिस का खुफिया तंत्र कमजोर हो गया है, जिससे निर्दोष आदिवासियों को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार के शासन में आदिवासी समुदाय पर अत्याचार बढ़ा है, और बिना ठोस सबूतों के पुलिस द्वारा उन्हें नक्सली बताकर मारा जा रहा है। इस मामले में कांग्रेस और विभिन्न आदिवासी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) के प्रदेश अध्यक्ष कमलेश तेकाम ने इसे “पुलिस की सुनियोजित साजिश” करार दिया और कहा कि वे इस मुद्दे को उच्च न्यायालय तक लेकर जाएंगे। वहीं, आदिवासी एक्टिविस्ट सुनील आदिवासी ने बातचीत में कहा कि प्रदेश में पुलिस द्वारा आदिवासियों के फर्जी एनकाउंटर्स की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे आदिवासी समाज भय और असुरक्षा में जी रहा है।
उमंग सिंघार ने इस घटना पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की चुप्पी पर भी सवाल उठाया और कहा कि जब देश की सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला हैं, तब भी इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार निष्पक्ष जांच नहीं कराती, तो विपक्ष आंदोलन के लिए सड़क पर उतरेगा।
विशेष पिछड़ी जनजातियों (पीवीटीजी) के अधिकारों को लेकर सवाल पहले भी उठते रहे हैं। बैगा, भरिया और सहरिया समुदायों के लोग लगातार पुलिसिया कार्रवाई का शिकार हो रहे हैं। इस घटना ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या पुलिस बिना पुख्ता सबूतों के आदिवासियों को नक्सली बताकर निशाना बना रही है? विपक्ष ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाने की बात कही है, जिससे आने वाले दिनों में यह मामला और तूल पकड़ सकता है।
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