भोपाल में नवाबों की होली: जब महल से बाजार तक रंग ही रंग था

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भोपाल। देशभर में होली का त्योहार अपने अलग-अलग रंगों और परंपराओं के लिए जाना जाता है, लेकिन भोपाल की होली का इतिहास कुछ खास रहा है। यहां होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं था, बल्कि नवाबी दौर में यह गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल बन चुका था। भोपाल के नवाबों ने होली को केवल हिंदू समाज का पर्व नहीं माना, बल्कि इसे शाही अंदाज में मनाकर हर धर्म और समुदाय को एक सूत्र में पिरोने का जरिया बनाया। महलों से लेकर बाजारों तक, हर जगह इस त्योहार की रौनक देखने लायक होती थी।

भोपाल के नवाबों के शासनकाल में होली केवल हिंदू प्रजा तक सीमित नहीं थी। इसे नवाब भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते थे। महल के अंदरूनी हिस्सों में खास आयोजन किए जाते थे, जहां दरबारी, आमजन और विभिन्न समुदायों के लोग आमंत्रित होते थे। नवाब अपने मेहमानों पर खुद गुलाल उड़ाते और उन्हें शाही अंदाज में त्योहार की बधाई देते। इस अवसर पर खासतौर पर कवि सम्मेलन, शेरो-शायरी और संगीत के आयोजन किए जाते थे, जहां फाग गीतों की गूंज महल से बाहर तक सुनाई देती थी।

बेगमों के दौर की होली भी कम दिलचस्प नहीं थी। भोपाल की सत्ता लंबे समय तक महिला शासकों के हाथों में रही, जिनमें सिकंदर जहां बेगम और सुल्तान जहां बेगम प्रमुख थीं। उनके शासनकाल में होली का आयोजन बेहद खास होता था। हालांकि बेगम खुद होली के रंगों में शामिल नहीं होती थीं, लेकिन उन्होंने इस पर्व को लेकर कभी भेदभाव नहीं किया। महल के अंदरूनी हिस्सों में महिलाओं के लिए विशेष आयोजन होते थे, जहां शाही परिवार की महिलाएं और महल से जुड़ी अन्य महिलाएं एक-दूसरे को रंग लगाकर पर्व की खुशियां बांटती थीं। इन आयोजनों में विशेष व्यंजनों का भी प्रबंध किया जाता था, जिनमें शीरमाल, जर्दा पुलाव, मटन कोरमा और खोए की गुजिया जैसे पकवान शामिल होते थे।

भोपाल की होली की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सर्वधर्म समभाव की परंपरा थी। नवाबों ने इसे महज हिंदुओं का त्योहार नहीं माना, बल्कि इसे सभी वर्गों और समुदायों के साथ मिलकर मनाने की परंपरा डाली। महल के बाहर बाजारों और गलियों में भी यही नजारा देखने को मिलता था, जहां हिंदू-मुस्लिम व्यापारी और कारीगर एक-दूसरे को गुलाल लगाकर त्योहार की बधाई देते थे। इस अवसर पर शहर में मेलों का आयोजन भी किया जाता था, जहां मिठाइयों की दुकानों पर खासतौर पर गुजिया और अन्य पारंपरिक मिठाइयां बिकती थीं।

समय के साथ भोपाल की होली का स्वरूप बदला। नवाबी दौर खत्म हुआ, लेकिन इसकी यादें अब भी पुराने शहर की गलियों में जिंदा हैं। आज भी भोपाल में होली बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। पुराने शहर के इलाकों में होली के अवसर पर कवि सम्मेलन और फाग गायन की परंपरा जीवित है। लोग अब भी पुराने अंदाज में एक-दूसरे के घर जाकर गुलाल लगाते हैं और त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं। भले ही शाही महलों की होली अब इतिहास बन चुकी हो, लेकिन भोपाल की फिजाओं में इसका रंग आज भी घुला हुआ है।


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