लखनऊ/नोएडा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा की एक MA छात्रा से दुष्कर्म के आरोपी निश्चल चांडक को जमानत दे दी है। लेकिन अदालत की इस जमानत पर की गई टिप्पणी ने कानूनी हलकों से लेकर महिला अधिकार संगठनों तक में भारी नाराजगी पैदा कर दी है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता ने खुद ही “मुसीबत को न्योता दिया” और इसके लिए “वह स्वयं जिम्मेदार है”। न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह द्वारा की गई इस टिप्पणी को विक्टिम ब्लेमिंग माना जा रहा है।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला 21 सितंबर 2024 का है। नोएडा की एक MA छात्रा अपने दोस्तों के साथ एक बार गई थी। पार्टी में अधिक शराब पीने के बाद छात्रा असहज महसूस करने लगी। इसी दौरान आरोपी निश्चल चांडक उसे बहला-फुसलाकर गुरुग्राम के एक फ्लैट में ले गया, जहां उसके साथ कथित रूप से दो बार दुष्कर्म किया गया।
पीड़िता ने 23 सितंबर को नोएडा के सेक्टर 126 थाने में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद आरोपी को 11 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया। आरोपी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 64 (अब भारतीय दंड संहिता का नया स्वरूप) के तहत मामला दर्ज किया गया।
आरोपी का पक्ष और कोर्ट की reasoning
निश्चल के वकील ने अदालत में दलील दी कि पीड़िता बालिग है और अपनी मर्जी से दोस्तों के साथ बार गई थी। उन्होंने दावा किया कि दोनों के बीच सहमति से संबंध बने और आरोपी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।
कोर्ट ने आरोपी को राहत देते हुए कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म के ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता एक MA की छात्रा है और “अपने कृत्य के नैतिक परिणाम समझने में सक्षम” है। इसी आधार पर जमानत मंजूर की गई।
न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा—
“तथ्यों और हालातों, अपराध की प्रकृति, सबूतों और दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, मैं मानता हूं कि यह मामला जमानत के लिए उपयुक्त है। इसलिए, आरोपी को जमानत दी जाती है।”
महिला संगठनों और विशेषज्ञों की तीखी प्रतिक्रिया
इस फैसले और विशेषकर अदालत की टिप्पणी पर महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों ने नाराजगी जताई है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अर्चना मिश्रा कहती हैं—
“नशे की हालत में दी गई सहमति वैध नहीं मानी जाती। कोर्ट को संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ टिप्पणी करनी चाहिए थी। इस तरह की बातें पीड़ित को ही दोषी ठहराती हैं, जो न्याय की मूल भावना के खिलाफ हैं।”
वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर एडवोकेट आशीष पांडे ने भी कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा— “सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा है कि अदालतें महिलाओं से जुड़े मामलों में भाषा का विशेष ध्यान रखें। इस तरह की टिप्पणियां न्यायपालिका की गरिमा को भी ठेस पहुंचाती हैं और समाज में गलत संदेश देती हैं।”
पिछले फैसले भी चर्चा में रहे हैं
इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले भी अपने कुछ विवादास्पद फैसलों को लेकर चर्चा में रहा है। महज तीन हफ्ते पहले 17 मार्च 2024 को हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना, उसका पायजामा खोलना और पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश “अटेम्प्ट टु रेप” नहीं माना जा सकता। इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ा था और कोर्ट ने निर्देश दिया था कि “विक्टिम शेमिंग” से बचा जाए और फैसलों में मर्यादित भाषा का प्रयोग हो।
अन्य मामलों में भी आरोपी को मिली है जमानत
इससे पहले भी कुछ मामलों में आरोपी को अदालत से राहत मिल चुकी है:
पहला मामला (अक्टूबर 2024):
15 साल की लड़की से दुष्कर्म का मामला। आरोपी अभिषेक पर शादी का झांसा देकर संबंध बनाने का आरोप था। लड़की गर्भवती हुई तो लड़के ने शादी से इनकार कर दिया। कोर्ट ने आरोपी की शादी की इच्छा और मेडिकल रिपोर्ट में लड़की की उम्र 18 साल होने के आधार पर जमानत दी।
दूसरा मामला (जून 2024, दिल्ली):
कॉलेज स्टूडेंट पर रेप का आरोप था। पीड़िता ने अपने सहपाठी पर आरोप लगाया। लेकिन आरोपी के फोन से दोनों की आपत्तिजनक तस्वीरें मिलीं। लड़की ने अपना फोन जांच के लिए नहीं दिया और दोस्तों की गवाही में भी आरोप सही साबित नहीं हुए। अदालत ने आरोपी को बेल दी और पीड़िता ने भी इसका विरोध नहीं किया।
फैसले के बाद आगे क्या होगा?
वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी दुबे ने कहा कि आरोपी को सिर्फ जमानत दी गई है, अभी ट्रायल शुरू नहीं हुआ है। पुलिस की जांच के बाद सारे सबूत और गवाह कोर्ट में पेश होंगे और तब तय होगा कि यह मामला रेप का है या नहीं। अगर आरोपी दोषी पाया गया, तो उसे 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
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