विंध्य क्षेत्र के एक महान शराब विभाग अधिकारी को रंगे हाथ पकड़ लिया गया। आय से अधिक संपत्ति? अरे छोड़िए, यह तो पुरानी बात हो गई। अब सवाल यह है कि फाइल जाएगी कहां? मंत्रालय में टेबल की सतह और फाइल की मोटाई के बीच कहीं फंसी पड़ी है—न निकलेगी, न दिखेगी!
रंगे हाथ महकमे के अधिकारी हर हफ्ते स्वीकृति मांग रहे थे। पहले तो ऊपर वाले साहब ने घुमा दिया—“देखेंगे, सोचेंगे, करेंगे।” लेकिन इस बार मूड बदला और साहब ने स्वीकृति दे दी। वाह! प्रशासन के रथ के पहिए घुमे, पर तेल वही पुराना निकला!
अब मसला यह है कि विभाग के ‘वजीर’ की चिट्ठी भी आ चुकी थी, जिसमें कार्रवाई की बात थी। लेकिन अफसोस! किसी ने वह चिट्ठी ऐसी दबा दी कि फाइल भी खोज रही है कि मैं कहां गई! मंत्रालय में टेबल पर कई वजनदार चीज़ें होती हैं—कुछ दिखती हैं, कुछ बस महसूस होती हैं।
अब सुनिए असली मज़े की बात। जिन साहब पर कार्रवाई होनी है, वो ऐंठ कर कुर्सी पर बैठे हैं। उनका डर और शर्म का रिश्ता वही है जो भ्रष्टाचार और ईमानदारी का होता है—कहीं दूर का नाता!
तो जनाब, यह मामला चलता रहेगा, टेबल के नीचे पड़ी चिट्ठी आगे सरकने से इंकार करती रहेगी और मंत्रालय में साहब के साहब इसे “गंभीरता से देखने” की बात करते रहेंगे। तब तक, अगली काना-फूसी में मिलते हैं! पढ़ते रहिए द न्यूज़ एनालिसिस..
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