भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी को चार दशक बीत जाने के बाद अब यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूका) फैक्ट्री में पड़े जहरीले कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया तेज हो गई है। इस कचरे को धार जिले के पीथमपुर स्थित रि-सस्टेनेबिलिटी (पूर्व में रामकी) कंपनी के संयंत्र में जलाकर नष्ट किया जा रहा है। तीन चरणों में किए गए परीक्षणों के दौरान अब तक 30 टन कचरा जलाया जा चुका है। परीक्षण रिपोर्ट 27 मार्च को जबलपुर हाई कोर्ट में पेश की जाएगी, जिसके बाद शेष 307 टन कचरे के निष्पादन पर अदालत का निर्णय आएगा।
तीन चरणों में हुए परीक्षणों के तहत 27 फरवरी, 4 मार्च और 10 मार्च को अलग-अलग दर से कचरे को जलाया गया। पहले चरण में 135 किलोग्राम प्रति घंटे, दूसरे में 180 किलोग्राम प्रति घंटे और तीसरे में 270 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से दहन0 किया गया। प्रत्येक चरण में 10 टन कचरा जलाया गया। इस प्रक्रिया से निकली राख को संयंत्र परिसर में सुरक्षित रूप से संग्रहित किया गया है, लेकिन उसके अंतिम निष्पादन को लेकर अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।
भोपाल गैस पीड़ित संगठनों और पर्यावरणविदों ने इस निष्पादन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यदि कचरे को जलाने में सावधानी नहीं बरती गई, तो इससे जल, वायु और मिट्टी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। पर्यावरणविदों ने मांग की है कि निष्पादन प्रक्रिया की प्रभावशीलता और इसके संभावित खतरों का गहन अध्ययन किया जाए। इससे पहले भी पीथमपुर संयंत्र में कचरा जलाने को लेकर विरोध हो चुका है।
गौरतलब है कि 2-3 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था, जिससे हजारों लोगों की जान गई और लाखों लोग प्रभावित हुए। इस त्रासदी के चार दशक बाद भी फैक्ट्री परिसर में पड़ा जहरीला कचरा पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है। निष्पादन प्रक्रिया में देरी के कारण यह मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा, जहां अब सुनवाई होने जा रही है।
27 मार्च को जबलपुर हाई कोर्ट में पेश होने वाली परीक्षण रिपोर्ट इस मामले में अहम भूमिका निभाएगी। यदि परीक्षण संतोषजनक पाए जाते हैं, तो अदालत 307 टन शेष कचरे के निष्पादन के लिए जरूरी दिशा-निर्देश जारी कर सकती है। इसके साथ ही, विशेषज्ञों की निगरानी में निष्पादन प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाने की संभावनाओं पर भी चर्चा हो सकती है।
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